Sunday, August 31, 2008

हर पल एक उम्मीद की राह
हर क्षण एक किरण की तलाश
कुछ ढूंढती सी निगाहें,
कुछ तलाशता सा दिल
एक पूरा पल -
खुद में पूरी कायनात लिए हुए
हर अधूरा कल -
खुद में हज़ार कहानियां समेटे हुए,
क्या है इसका अंत?
ये सब क्यूँ हो रहा है?
क्यूँ है ये आज? क्यूँ था वो कल?
क्या हैं ये पल?
क्यूँ हैं ये सवाल?
क्यूँ नहीं मैं भावनाशुन्य?

2 comments:

Neptune said...

bahut khubsurat :)
good to see u back to blogging after the short "sabbatical" :)

Nicks said...

same here. Its always good to be blogging. But fortunately/unfortunately, work leaves me with little time for blogging.
Have got to do a lot of catching up. :)